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न कर्तृत्वं न कर्माणि लोकस्य सृजति प्रभुः।
न कर्मफलसंयोगं स्वभावस्तु प्रवर्तते।।5.14।।
भगवान इस लोक के प्राणियों के न कर्तव्य की ना क्रमों की
और ना ही कर्मफल के साथ संयोग की रचना करते है, ये सब स्वभाव से होता है
यहाँ भगवान कृष्ण कह रहे कि न तो मैं (भगवान) किसी प्राणी के कामों का व न ही कर्तव्यों का निर्धारण करता हु। न ही मैं क्रमों के होने वाले फल या नतीजे का निर्णय करता हु। ये सब प्राणी मात्र के स्वभाव या प्रकीर्ति पर निर्भर करता है
जैसे हिरण की प्रवृत्ति घास खाना है, और हिरण पैदा करना है व प्रकृतिक मौत या शिकार होकर मर जाना हैं। सिंह की प्रवृत्ति अपने से कमजोर जीवों का शिकार करके खाना है। इसी तरह मानव अपने स्वभाव के अनुसार काम करता है। दुष्ट व्यक्ति दुष्टा करता है, अच्छा व्यक्ति अच्छे काम करता है।
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