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यह एक बड़े ही विचार का विषय है कि कर्म, भाग्य और ज्योतिष क्या है और एक मनुष्य के जीवन पर इनका क्या और कितना प्रभाव पड़ता है?
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भाग्य, कर्म और ज्योतिष विज्ञान
भाग्य कैसे बनता है - वह पूर्व जन्म के कर्म जिनका फल चाहे वह सुख हो या दुःख हम वर्तमान जीवन में भोगते है भाग्य बनाते है। हर व्यक्ति का भाग्य उसके पूर्व जन्म के कर्मों के अनुसार निर्धारित होता है और उन्ही कर्मों की वजह से वर्तमान जन्म में एक विशेष तरीके से व्यवहार करने के लिए बाध्य होता है. सुख-दुःख, धन-गरीबी, क्रोध, अहंकार, आदि गुण जो भी हम जीवन में पाते हैं वह सब पूर्व निर्धारित होता है. परंतु, ज्योतिष केवल घटनाएं जानने का विज्ञान नहीं है, वह हमें हमारा भूत और भविष्य भी बताता है. साधारण व्यक्ति भाग्य को परिवर्तित नहीं कर सकते हैं और ना ही भाग्य के विषय में आसानी से जाना जा सकता है. क्योकि कर्म के फलों में परिवर्तन करने के लिए एक साधनारत ज्योतिषी और परिश्रमी साधक को लम्बे समय तक धैर्य के साथ प्रयत्न करने के आवश्यकता होती है।
कर्म और ज्योतिष विज्ञान -
ज्योतिष विज्ञानं हमारे कर्मो का ढांचा बताता है . यह हमारे भूत वर्तमान और भविष्य में एक कड़ी बनता है. कर्म चार प्रकार के होते है:
१- संचित
२- प्रारब्ध
३- क्रियमाण
४- आगम
संचित - संचित कर्म समस्त पूर्व जनम के कर्मो का संगृहीत रूप है . हमने जो भी कर्म अपने पिछले सारे जन्मों में जानकार या अनजान रूप से किये होते है वह सभी हमारे कर्म खाते में संचित हो जाते है. कर्म जैसे -२ परिपक्व होते जाते है हम उसे हर जन्म में भोगते है. जैसे किसी भी वृक्ष के फल एक साथ नहीं पकते, बल्कि फल प्राप्ति के महीने में अलग - अलग दिनों में ही पकते है.
प्रारब्ध - प्रारब्ध कर्म , संचित कर्म का वह भाग होता है जिसका हम भोग वर्तमान जनम में करने वाले है . इसी को भाग्य भी कहते है. समस्त संचित कर्मों को एक साथ नहीं भोग जा सकता. वह कर्म जो परिपाक हो गया होता है. यही समय दशा अन्तर्दशा के अनुसार जाना जाता है .
क्रियमाण - क्रियमाण कर्म वह कर्म है जो हम वर्तमान में करते है किन्तु इसकी स्वतंत्रता हमारे पिछले जन्म के कर्मो पर निर्भर करती है . क्रियमाण कर्म इश्वर प्रदत्त वह संकल्प शक्ति है, जो हमारे कई पूर्व जन्म के कर्मो के दुष्प्रभावों को समाप्त करने में सहायता करती है. उदाहरण के लिए वर्तमान जन्म में माना कि क्रोध अधिक आता है. यह क्रोध कि प्रवृत्ति पिछले कई जन्मों के कर्मों के कारण बन गयी है. यह तो सर्व विदित है कि क्रोध में कितने गलत कार्य हो जाते है. अगर कोई ध्यान और अन्य उपायों के द्वारा क्रोध को सजग रहकर नियंत्रित करे तो धीरे - धीरे प्रयासों के द्वारा क्रोध पर संयम पाया जा सकता है और भविष्य में कई बुरे कर्मों और समस्याओ जैसे कि रिश्तों में तनाव इत्यादि को दूर किया जा सकता है
आगम - आगम करम वह नए करम है जो की हम भविष्य में करने वाले हैं. यह कर्म केवल ईश्वर की सहायता से ही संभव है. जैसे की भविष्य में होने वाली घटनाओं का पूर्वाभास और उस समस्या के समाधान के लिए ईश्वर के द्वारा दिशा निर्देश. जैसे- जैसे हमारे पाप कर्मों का बोझ कम होता जाता है, उच्च शक्तियों की सहायता मिलने लगती है.
हम अपना भविष्य अपने विचारों, शब्दों और कर्मो के द्वारा बनाते है. कर्म दो प्रकार के होते है - शुभ और अशुभ ।दूषित कर्म जीवन में दुःख लाते है . हमारे पूर्व जनम के कर्म मन को प्रभावित करते है . अगर हम नकारात्मक विचारों को, जो की मन को कमजोर बनाते है, ध्यान और उपायों के द्वारा दूर करें तो यही मन सकारात्मक विचारों की उर्जा से हमारे कर्मो को शुद्ध कर देता है जिससे एक नए भविष्य का निर्माण संभव हो जाता है . उपायों के द्वारा जब हम आपने पुराने कर्मो को संतुलित कर देते है तो मन के ऊपर से उनकी बाधा हट जाती है.