भगवान श्री कृष्ण गीता के अध्याय ५, श्लोक १५ में कहते है
नादत्ते कस्यचित्पापं न चैव सुकृतं विभु: |
अज्ञानेनावृतं ज्ञानं तेन मुह्यन्ति जन्तव: ।।
भगवान न तो किसी के पापों को ग्रहण करते, न पुण्यों को
किन्तु सभी जीव अज्ञानवस मोहग्रस्त रहते हैं जो की उनके वास्तविक ज्ञान को ढके रहता है।
तात्पर्य है कि भगवान किसी के क्रमों के उत्तरदायी नहीं है। हम ओर केवल हम सब अपने क्रमों के स्वयं उत्तरदायी है