क्या देवादिदेव गणेश ही ऋगवेद के ब्रह्मणस्पति या बृहस्पति है? वेदों

6 वोट |2012 days पहले keshavrao द्वारा की गई पोस्ट |4 टिप्पणियाँ

कई विद्वानो ने ऋगवेद के ब्रह्मणस्पति या बृहस्पति को भगवान गणेश माना है। ऋगवेद की एक प्रसिद्ध ऋचा "ग॒णानां॑ त्वा ग॒णप॑तिं हवामहे", पुरोहितो द्वारा पूजा या यज्ञ से पहले कही जाती है। दूसरी ओर बहुत सारे विद्वानो का मत है कि गणेश वैदिककाल के बाद के देवता है तथा यह ऋचा बृहस्पति देवता के लिये है जो की भगवान गणेश से भिन्न है।

कृपया उत्तर में अपने मत के साथ ही वेद, पुराण​, आरण्यक​, ब्राह्मण ग्रन्थ का सन्दर्भ अवश्य दे॥


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  • jay2010 days ago | +0 points

    वेदों में परमात्मा के लिए इन्द्र, मित्र, वरुण आदि अनेक शब्द आये हैं अर्थात इन्द्र से इंद्रदेव से अर्थ लगाना गलत है। गणपति के विषय में सबसे पहले यह समझना होगा कि गणेश जी कौन हैं? सृष्टि काल में एक ही ईश्वर या परमात्मा स्वयं को पांच रूपों में व्यक्त करते हैं:1. सृष्टिकर्ता- ब्रम्हा2. पालक- विष्णु3. संहारक- शिव4. निग्रह- शक्ति5. अनुग्रह- गणपतिअतः स्पष्ट रूप से गणपति परमात्मा के ही रूप हैं। ऋग्वेद 1/18/5 में ब्रह्मणस्पते से अर्थ उसी परमात्मा से है जिसे गणपति भी कहा गया है। 

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  • keshavrao2008 days ago | +0 points

    जय भ्राता, आपके उत्तर एवं विचार हेतु साधुवाद​। यद्यपि आपका उत्तर सटीक एवं आत्मावलोचन हेतु पर्याप्त है, तथापि इस प्रश्नविवेचन के पर्यन्त मुझे डा॰ मोहन लाल द्वारा लिखा एक शोधपत्र पढ़ने का अवसर मिला। इस प्रश्न कि विवेचना अत्यन्त ही विस्तारपूर्वक एवं सन्दर्भपर्यन्त है। आपके एवं अन्य पाठको के लाभार्थ उसका लिंक यहाँ प्रेषित कर रहा हूँ॥

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